कौन अपना कौन पराया


"विनीता तुमने मेरे कँगन देखे क्या? सुबह से ढूँढ रही हूँ मिल ही नही रहा है। कल रात तो उतार कर यहीं रखा था ,पता नहीं कहाँ गायब हो गया।" ( माँ ने कँगन ढूँढते हुये विनीता से कहा)

विनीता ने अनजान बनते हुये कहा "मुझे क्या पता माँ,देखो तुमने ही कहीं रखा होगा और भूल गयी होगी। तुम्हारे ये भारी भरकम कँगन तो मुझे बिल्कुल भी पसंद नही है ऊपर से ज़रा अपना साइज देखो माँ, मैं पहनने की कोशिश भी करूँगी तो वापस नीचे ही उतर आयेगा।"

हाँ भाभी को पूछलो वो गयी थी सुबह तुम्हारे कमरे में। माँ ने कहा- रहने दे विनीता पुनीता वैसे भी बहुत दुखी है... मैं ये सब पूछूँगी तो उसे और बुरा लगेगा।आज कल तेरे भैया का काम थोडा खराब चल रहा है ऊपर से बेटी की शादी भी सर पर है ।

माँ देख लो कहीं भाभी तुम्हारे गहनों से ही तो अपनी बेटी का दहेज नही जुटा रही है....(विनीता ने ठहाके लगाते हुए कहा)

विनीता की जोर की हँसी सुन कर पुनीता रसोयी से बाहर आयी और हँसते हुए बोली क्या हुआ

 विनीता किस बात पर इतनी हँसी आ रही है... मुझे भी तो बताओ।

विनीता ने कहा - अरे भाभी बेचारी माँ सुबह से परेशान है तो मैने.... इससे पहले की विनीता कुछ कहती माँजी ने पुनीता से ही सवाल कर दिया कि "बहु तुमने मेरे कँगन देखे क्या ?"

पुनीता ने कहा "नहीं माँजी मैने तो नही देखे। शायद आप कहीं रख कर भूल गयी होंगी।"

माँ ने कहा "इतनी भुल्लकड़ नही हूँ मैं... तुम आयी तो थी सुबह मेरे कमरे में झाड़ू लगाने.. तो तुमने देखा ही होगा।"

पुनीता का अब भी वही जवाब था , तब विनीता बोली " माँ क्या बेमतलब के सवाल पूछ रही हो, भाभी ने लिया भी होगा तो तुम्हे बताएगी क्या।

विनीता ने बिना एक पल गँवाये तुरंत कहा " भाभी अगर आप को चाहिये था तो वो माँ से माँग लेती ... ऐसे कभी भी किसी का सामान नही लेना चाहिए ।

माँ ने कहा" रहने दो तुम अभी बच्ची हो। ये घर गृहस्थी के दाँव पेंच तुम्हारी समझ के बाहर है, जाओ अंदर।

पर मैं तो... इससे पहले कि विनीता कुछ और कहती माँ ने उसे डाँट कर अंदर भेज दिया और पुनीता के करीब आ कर बोली " देखो बहु अगर तुमने लिया है तो बता दो... तुम्हे चाहिये तो मैं बनवा दूँगी पर इस तरह चोरी ना करो।"

पुनीता डबडबायी आँखो से माँजी को देखती रह गयी और सोचने लगी कि बिना किसी स्वार्थ के आज तक जिसकी सेवा करती रही आज उन्होने ही मुझ पर इतना बड़ा इल्ज़ाम लगा दिया। मैने तो इनके इलाज के लिए अपने माँ के दिये गहने तर गिरवी रख दिये थे...और करती भी क्या बाबूजी तो पहले ही स्वर्गवासी हो चुके थे और मेरे पति भी यहाँ नहीं थे। पेट में दर्द की वजह से माँजी का तत्कालीन इलाज करवाना पड़ा और उस वक्त मेरे पास उतने पैसे नही थे तो मुझे जो सही लगा मैने किया। माँ के दिये गहने तो मेरे पति ने वापस दिला दिये थे पर अगर माँजी को कुछ हो जाता तो मैं क्या करती।

अपने खयालो में खोयी पुनीता अपने आँसू ना सम्भाल पायी और रोने लगी।

तभी विनीता ने कहा हाँ अब रोना धोना शुरू कर दो ,यही तो तुम्हारा सबसे बड़ा हथियार है,जब कुछ गलती हो तो रोने लगो।

अपने मोह जाल में भैया को फँसाया और बिना दहेज के शादी कर ली, खुब समझती हूँ मैं तुम बाप बेटी को,माँ तो पहले ही चल बसी थी.. पिता ने भी बेटी को खुला छोड़ दिया कि जाओ किसी को पसंद कर के मुफ्त में शादी कर लो। खुदगर्ज कहीं के।

विनीता पुनीता पर इल्ज़ाम लगाये जा रही थी, ऐसा नही था कि पुनीता  जवाब नही दे सकती थी, पर वो तो माँजी की बेरूखी देख कर दुखी थी।

इधर विनीता ने भी फोन करके अपने भैया सुजीत को सब कुछ बता दिया।

सुजीत भी भागा भागा घर आया और वहीं चौखट पर ही जम गया l उसने सब कुछ सुना जो विनीता पुनीता को सुना रही थी। उसे तो हैरानी थी कि माँ ने पुनीता पर चोरी का इल्ज़ाम कैसे लगा दिया।

जैसे ही विनीता ने पुनीता के साथ साथ उसके घरवालों पर भी जालसाज़ी का इल्ज़ाम लगाना शुरू किया और पुनीता के कमरे की तलाशी लेने के लिए आगे बढ़ी वैसे ही सुजीत ने जोर की आवाज लगा कर उसे रोका और कहा " विनीता जो तुम्हारे मन में आ रहा है तुम बोले जा रही हो,तुम्हे जरा भी लिहाज नही है कि वो तुम्हारी भाभी है, बड़ी है तुमसे।

 देख लो माँ अब भैया भी मुझे ही सुनायेंगे,कहते हुये विनीता ने रोना शुरू कर दिया। माँ ने भी गुस्से से सुजीत को डाँटा और कहा  ये पहले से ही दुखी है तुम इसे अब कुछ ना कहो। गलती तुम्हारी बीवी की है उससे बात करो।

सुजीत ने कहा " वाह माँ... जब तक तुम्हे अच्छी लगी तब तक ये तुम्हारी बहु रही और आज जरा सी खटक क्या गयी तुमने तो इससे रिश्ता ही तोड़ लिया। अब ये मेरी पत्नी ही रह गयी बस...।"

सुजीत पुनीता के पास गया और बोला तुम परेशान मत हो... मुझे पूरा विश्वास है तुम पर। मैं हूँ साथ तुम्हारे।

तभी बाहर से आवाज आयी.. सबने मुड़ कर देखा तो बाहर जौहरी खड़ा था...माँ ने पूछा " क्या बात है सेठ जी..आज यहाँ कैसे आना हुआ... लगता है आप तक भी खबर पहुँच ही गयी कि मेरे सोने के कँगन.....

.जौहरी ने कहा "अम्मा जी वही तो मैं भी कह रहा हूँ, आपने जो सोने के कँगन भिजवाये थे ना विनीता बिटिया से बेचने के लिए ..जल्द बाजी मे बिटिया उसकी बिक्री की रसीद लेना ही भूल गयी। मैं इधर से गुजर रहा था तो सोचा आपको दे दूँ।

सुजीत और पुनीता ने सबसे पहले माँ की तरफ ही देखा। माँ भी शून्य सी खड़ी रह गयी कि जिसे अपना समझ रही थी वही मेरा घर तोड़ने पर लगी हुयी है।वो कँगन मैने उसी के लिये बचा के रखे थे और वही उसे बेचने निकली  .... मेरी ही परवरिश में खोट निकली ,मैने नाहक तुम पर शक किया

सुजीत ने जौहरी को कहा कि माँ अभी कँगन नही बेचेंगी आप चलो मैं दुकान पर आता हूँ।

जौहरी के जाते ही विनीता ने अपने पर्स से पैसे निकाल कर माँ के सामने रख दिया और सिर झुकाये खड़ी हो गयी।

माँ सीधे पुनीता के पास आ गयी और कहने लगी मुझे माफ कर दो बेटा मैने तुम्हे गलत समझा। मैं विनीता की बातों मे आ गयी थी.. मैं समझ गयी कि अपना ही सिक्का खोटा है। तुम भूल जाओ आज जो कुछ भी हुआ और मुझे माफ कर दो बहु।अपनी इन्ही हरकतों के कारण ससुराल में पांव नही टिकते उसके l

पुनीता  इस कदर हतास हो चुकी थी कि उसने माँ जी को जवाब दे ही दिया और कहा " माँ आप क्यों माफी माँग रही हैं....आपने तो आज मेरे आँखो पर पड़ा पर्दा हटा दिया.. मैं तो आपको अपनी माँ समझती थी पर आपने बता दिया कि बहु कभी बेटी नही बन सकती...मेरे कर्मों का बहुत अच्छा फल दिया है आपने....  आपने जो किया बहुत अच्छा किया आपने आज एहसास करा दिया कि सिर्फ अपना खून ही अपना होता है बाकी तो सब पराये ही होते हैं। मैं चाह कर भी आज का दिन कभी नही भूल पाऊँगी।

आज किसी और की बातों में आकर आपने मुझ पर विश्वास नही किया और अब मेरा भी विश्वास आप पर से उठ चुका है। आपके अपने परिवार के लोग जो हर कदम पर आपको सहारा दे सकते हैं, उनको आप किसी के बहकावे में आकर अपने से दूर कर दिया . अगर कुछ टूट जाये तो उसे जोड़ना बहुत मुश्किल है, कुछ बिखर जाये तो उसे फिर से समेटा नहीं जा सकता.  आज मैं भी बिखर गयी हूँ और हमारा रिश्ता भी बिखर गया है। अब इसे समेटने का कोई फायदा नहीं माँजी।

आपने तो सुना ही होगा...बिना विचारे जो करे सो पाछे पछिताय... बस यही बात मैं भी आपको बताना चाहती हूँ कि बिना जाने सुने किसी के बारे में अपनी राय बनाना सही नही होता है।

विश्वास के धागे बहुत नाजुक होते हैं... एक बार टूट जाये तो चाहे जितना भी बाँध लो गाँठ तो रह ही जाती है।

टिप्पणियाँ

  1. सच में विश्वास के धागे बहुत कमजोर होते हैं एक बार टूट गए तो जुड़ भले जाएं पर गांठ पड़ ही जाती है बहुत सुंदर शिक्षाप्रद कहानी 👌👌👌

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  2. सच है , विश्वास के धागे बहुत कमजोर होते हैं ... रिश्ते बन तो जाते हैं पर उसे निभा वही पाते हैं जो उन्हें वास्तव में निभाना चाहते हैं | बहुत अच्छी शिक्षाप्रद कहानी

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  3. बहुत सुंदर शिक्षाप्रद कहानी..

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  4. अधिकतर घरों में ऐसा ही होता है बहू चाहे कितनी ही अच्छी हो उसे पराया ही समझा जाता है बेटी के आगे उसकी गिनती नहीं होती. बढ़िया रचना

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  5. काश.....
    बहु को भी बेटी की तरह प्यार दुलार मिले तो शक की कोई गुंजाइश ही न हो
    पर ऐसा होता ही कहा है

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